Thursday, January 31, 2013

चायनामा (अर्थात मानव सभ्यता के विकास में चाय के योगदान की कथा) – 1

            “It is very strange, this domination of our intellect by our digestive organs. We cannot work, we cannot think, unless our stomach wills so. It dictates to us our emotions, our passions. After eggs and bacon it says, ‘Work!’. After beefsteak and porter, it says, ‘Sleep!’. After a cup of tea (two spoonfuls for each cup, and don’t let it stand for more than three minutes), it says to the brain, ‘Now rise, and show your strength. Be eloquent, and deep, and tender; see, with a clear eye, into Nature, and into life : spread your white wings of quivering thought, and soar, a god-like spirit, over the whirling world beneath you, up through long lanes of flaming stars to the gates of eternity!’ “ Jerome K.Jerome, Three Men in a Boat.
      चाय सभी पीते हैं, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि चाय ने मानव सभ्यता के विकास में अद्वितीय भूमिका निभाई है. मानव सभ्यता को इस मुकाम तक पहुंचाने में चाय का योगदान पेंसिलिन के योगदान से भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है. फिर भी, चाय के इस व्यापक और दिव्य स्वरूप से मूढ़मति मानव अनभिज्ञ रहा है ... या फिर यूँ कहें कि चाय की चुस्कियों में खोयी हुई मानव जाति ने चाय के इस महान योगदान को नज़रंदाज़ कर दिया है, और चाय को महज एक तरल पेय बना कर छोड़ दिया है. अरे, चाय तो वह उत्कृष्ट और आदर्श पेय है जिसे बार बार और प्रचुर मात्रा में पिया सकता है, जो शरीर और मन दोनों को स्वतः-स्फूर्त बना देता है और वह भी बगैर किसी उत्तर प्रभाव (after effect) या अपराध-बोध (guilt) के !
      संसार में सबसे ज्यादा खपत होने वाले तरल पदार्थों में यह सामान्य सा माना जाने वाला पेय गर्व से सीना ताने दूसरे स्थान पर स्थापित है (पहले स्थान पर पानी है !!!). यूँ तो चाय का वैज्ञानिक नाम Camellia Sinensis है लेकिन दुनिया के विभिन्न देशों में इसे Tea,  चाय, चाह, चहा, चा, चाह आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है, यह अनेक रूपों में मिलता है और अन्यान्य रूपों में इसका उपयोग अमूमन पूरे संसार में किया जाता है. लेकिन इन तमाम जटिलताओं के बावजूद चाय का इतिहास हमारे अपने इतिहास का प्रतिबिम्ब है; यह मानव सभ्यता के उत्थान और पतन की दास्तान है.
      यह तो सभी जानते हैं कि चाय की पत्तियों का उपयोग सर्वप्रथम चीन में हुआ और वहीँ से कालान्तर में चाय का प्रचार-प्रसार पूरी दुनिया में हो गया. हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है फिर भी चाय की खोज का श्रेय प्राचीन चीनी सम्राट शेन नौंग या शेन नुंग (Shen Nong/Shennong) को दिया जाता है. यह चीनी सम्राट सिर्फ एक सम्राट नहीं था ... वह दुनिया का पहला जीनियस और आविष्कारक था जिसने अपने प्राणों की चिंता किये बगैर मानवता के लिए वह पहली घूँट ली थी जिसके परिणाम दूरगामी होने वाले थे. कई सहस्राब्दी के बाद चाँद पर पहला कदम रखने के बाद नील आर्मस्ट्रौंग ने कहा "That's one small step for [a] man, one giant leap for mankind." वह तो भला हो कि सम्राट शेन नौंग की आत्मकथा उपलब्ध नहीं है, वरना आर्मस्ट्रौंग पर साहित्यिक चोरी (Plagiarism) का आरोप लग जाता क्योंकि उस घूँट को लेने के बाद सम्राट शेन नौंग ने जरूर कहा होता “That’s one small gulp for [a] man, one giant swallow for mankind”!  प्राचीन अभिलेखों की अनुपलब्धता कभी कभी छोटे से इंसान पर भी महानता थोप देती है !!!  
कहा जाता है कि सम्राट शेन नौंग इतने दूरदर्शी थे कि ईसा मसीह के जन्म के करीब २७०० वर्ष पहले से ही वे पानी उबाल कर पीने लगे थे ! उनके शाही रसोइये को यह सख्त हिदायत थी कि हर हाल में सम्राट को उबला हुआ पानी ही पेश किया करे. सम्राट शेन नौंग को संभवतः गले में खराश की भी शिकायत रहती थी और चूंकि उस समय तक “गले में खिच-खिच” के लिए विक्स की गोली का आविष्कार नहीं हुआ था अतः मजबूरी के वशीभूत वह महान सम्राट उबले हुए पानी को गरमागरम अवस्था में ही हलके हलके चुस्की ले कर पीते थे.
तो हुआ यूँ कि ईसा पूर्व २७३७ में सम्राट शेन नौंग अपने लश्कर के साथ अपने साम्राज्य के किसी सुदूर क्षेत्र में थे. बहुत तेज गर्मी थी और गर्म हवाएं जिस्म को झुलसा और गले को शुष्क बना रही थीं. उस तपती दुपहरी में गर्मी से बेहाल सम्राट ने गले को तर करने के लिए अपने चोबदार से पानी माँगा. उबला हुआ पानी समाप्त हो चुका था, सेना और लश्कर का भी बुरा हाल था और सभी पसीने से सराबोर थे. अपने लश्कर का यह हाल देखकर उस सहृदय सम्राट का दिल तो खैर कम ही पसीजा लेकिन गले की शुष्की और उबले पानी के अभाव ने उन्हें मजबूर कर दिया और उनहोंने अपने लश्कर को खेमा डालने और रसोइये को पानी उबालने का फरमान जारी कर दिया. बाद में इसी तरह की मजबूरियों पर आधारित  एक मुहावरा भारत में बहुत प्रसिद्द और लोकप्रिय हुआ : “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” !!!
खैर, तो सम्राट शेन नौंग के लश्कर ने खेमा डाल दिया और सम्राट का मुख्य रसोइया सूखी लकड़ी आदि बिन कर घोड़ों की लीद के उपले आदि की सहायता से एक घनी झाडी के नीचे आग जला कर सम्राट के लिए पानी उबालने की जुगत में लग गया. गर्मी तेज थी, उसपर से आग की आंच और धुएं की मार से रसोइये की आँखों में पानी भर आया और वह देख नहीं पाया कि झाडी से कुछ सूखी हुई पत्तियां हवा के झोंके से टूट कर उबलने के लिए आंच पर रखे पानी में गिर गयीं थीं. उन पत्तियों के साथ ही पानी उबल गया और पानी का रंग हल्का भूरा सा हो गया. सम्राट को तेज प्यास लगी थी और रसोइया गर्मी, धुएं और पसीने से बेहाल था. सो उसने वही उबला हुआ पानी सम्राट के समक्ष पेश कर दिया.
जैसा कि पहले ही बताया गया है सम्राट शेन नौंग एक आम सम्राट नहीं थे, वे दुनिया के पहले जीनियस और आविष्कारक भी थे और सबसे बड़ी बात यह थी कि गर्मी से उनका बुरा हाल हो रहा था. वे उस हलके भूरे से पानी को फ़ेंक भी सकते थे, दुबारा पानी उबलवा सकते थे, रसोइये का गला हलाक कर दे सकते थे ... लेकिन उनहोंने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि उन्हें यह दिव्य अहसास भी था कि वे दुनिया की सूरत और इंसान की तकदीर बदलने वाले हैं. वे उसी भूरे से पानी की चुस्कियां लेने लगे और महान हो गए. यदि सम्राट शेन नौंग के जमाने में शेक्सपीयर पैदा हुए होते तो वे उसी समय लिख देते, Some are born great, some achieve greatness and some have greatness thrust upon them”!
उस भूरे से पानी की चुस्कियों ने सम्राट शेन नौंग के थके हुए शरीर में एक नयी ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार किया. सम्राट की बाछें खिल गयीं और दुनिया को चाय मिल गयी !!! ईसा पूर्व २७३७ के बाद मानव सभ्यता का इतिहास चाय के इतिहास से ओत-प्रोत हो गया और चीन के लोग उसी दिन से अपने सम्राटों को दैवी अवतार मानने लगे !!!
सहस्राब्दियाँ बीत गयीं और सम्राट शेन नौंग का जीनियस और उनकी महानता चाय की पत्तियों की गर्द में दब गयी. उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि ईसा मसीह की मृत्यु के १९०३ वर्ष बाद महान आविष्कारक टॉमस अल्वा एडीसन ने दी और कहा, “Genius is one percent inspiration, ninety-nine percent perspiration” !!!
कोई सच्चा आविष्कारक ही दूसरे आविष्कारक की महानता को पहचान सकता है !!!

दूसरी किश्त जल्दी ही...