Thursday, January 31, 2013

चायनामा (अर्थात मानव सभ्यता के विकास में चाय के योगदान की कथा) – 1

            “It is very strange, this domination of our intellect by our digestive organs. We cannot work, we cannot think, unless our stomach wills so. It dictates to us our emotions, our passions. After eggs and bacon it says, ‘Work!’. After beefsteak and porter, it says, ‘Sleep!’. After a cup of tea (two spoonfuls for each cup, and don’t let it stand for more than three minutes), it says to the brain, ‘Now rise, and show your strength. Be eloquent, and deep, and tender; see, with a clear eye, into Nature, and into life : spread your white wings of quivering thought, and soar, a god-like spirit, over the whirling world beneath you, up through long lanes of flaming stars to the gates of eternity!’ “ Jerome K.Jerome, Three Men in a Boat.
      चाय सभी पीते हैं, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि चाय ने मानव सभ्यता के विकास में अद्वितीय भूमिका निभाई है. मानव सभ्यता को इस मुकाम तक पहुंचाने में चाय का योगदान पेंसिलिन के योगदान से भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण रहा है. फिर भी, चाय के इस व्यापक और दिव्य स्वरूप से मूढ़मति मानव अनभिज्ञ रहा है ... या फिर यूँ कहें कि चाय की चुस्कियों में खोयी हुई मानव जाति ने चाय के इस महान योगदान को नज़रंदाज़ कर दिया है, और चाय को महज एक तरल पेय बना कर छोड़ दिया है. अरे, चाय तो वह उत्कृष्ट और आदर्श पेय है जिसे बार बार और प्रचुर मात्रा में पिया सकता है, जो शरीर और मन दोनों को स्वतः-स्फूर्त बना देता है और वह भी बगैर किसी उत्तर प्रभाव (after effect) या अपराध-बोध (guilt) के !
      संसार में सबसे ज्यादा खपत होने वाले तरल पदार्थों में यह सामान्य सा माना जाने वाला पेय गर्व से सीना ताने दूसरे स्थान पर स्थापित है (पहले स्थान पर पानी है !!!). यूँ तो चाय का वैज्ञानिक नाम Camellia Sinensis है लेकिन दुनिया के विभिन्न देशों में इसे Tea,  चाय, चाह, चहा, चा, चाह आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है, यह अनेक रूपों में मिलता है और अन्यान्य रूपों में इसका उपयोग अमूमन पूरे संसार में किया जाता है. लेकिन इन तमाम जटिलताओं के बावजूद चाय का इतिहास हमारे अपने इतिहास का प्रतिबिम्ब है; यह मानव सभ्यता के उत्थान और पतन की दास्तान है.
      यह तो सभी जानते हैं कि चाय की पत्तियों का उपयोग सर्वप्रथम चीन में हुआ और वहीँ से कालान्तर में चाय का प्रचार-प्रसार पूरी दुनिया में हो गया. हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है फिर भी चाय की खोज का श्रेय प्राचीन चीनी सम्राट शेन नौंग या शेन नुंग (Shen Nong/Shennong) को दिया जाता है. यह चीनी सम्राट सिर्फ एक सम्राट नहीं था ... वह दुनिया का पहला जीनियस और आविष्कारक था जिसने अपने प्राणों की चिंता किये बगैर मानवता के लिए वह पहली घूँट ली थी जिसके परिणाम दूरगामी होने वाले थे. कई सहस्राब्दी के बाद चाँद पर पहला कदम रखने के बाद नील आर्मस्ट्रौंग ने कहा "That's one small step for [a] man, one giant leap for mankind." वह तो भला हो कि सम्राट शेन नौंग की आत्मकथा उपलब्ध नहीं है, वरना आर्मस्ट्रौंग पर साहित्यिक चोरी (Plagiarism) का आरोप लग जाता क्योंकि उस घूँट को लेने के बाद सम्राट शेन नौंग ने जरूर कहा होता “That’s one small gulp for [a] man, one giant swallow for mankind”!  प्राचीन अभिलेखों की अनुपलब्धता कभी कभी छोटे से इंसान पर भी महानता थोप देती है !!!  
कहा जाता है कि सम्राट शेन नौंग इतने दूरदर्शी थे कि ईसा मसीह के जन्म के करीब २७०० वर्ष पहले से ही वे पानी उबाल कर पीने लगे थे ! उनके शाही रसोइये को यह सख्त हिदायत थी कि हर हाल में सम्राट को उबला हुआ पानी ही पेश किया करे. सम्राट शेन नौंग को संभवतः गले में खराश की भी शिकायत रहती थी और चूंकि उस समय तक “गले में खिच-खिच” के लिए विक्स की गोली का आविष्कार नहीं हुआ था अतः मजबूरी के वशीभूत वह महान सम्राट उबले हुए पानी को गरमागरम अवस्था में ही हलके हलके चुस्की ले कर पीते थे.
तो हुआ यूँ कि ईसा पूर्व २७३७ में सम्राट शेन नौंग अपने लश्कर के साथ अपने साम्राज्य के किसी सुदूर क्षेत्र में थे. बहुत तेज गर्मी थी और गर्म हवाएं जिस्म को झुलसा और गले को शुष्क बना रही थीं. उस तपती दुपहरी में गर्मी से बेहाल सम्राट ने गले को तर करने के लिए अपने चोबदार से पानी माँगा. उबला हुआ पानी समाप्त हो चुका था, सेना और लश्कर का भी बुरा हाल था और सभी पसीने से सराबोर थे. अपने लश्कर का यह हाल देखकर उस सहृदय सम्राट का दिल तो खैर कम ही पसीजा लेकिन गले की शुष्की और उबले पानी के अभाव ने उन्हें मजबूर कर दिया और उनहोंने अपने लश्कर को खेमा डालने और रसोइये को पानी उबालने का फरमान जारी कर दिया. बाद में इसी तरह की मजबूरियों पर आधारित  एक मुहावरा भारत में बहुत प्रसिद्द और लोकप्रिय हुआ : “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” !!!
खैर, तो सम्राट शेन नौंग के लश्कर ने खेमा डाल दिया और सम्राट का मुख्य रसोइया सूखी लकड़ी आदि बिन कर घोड़ों की लीद के उपले आदि की सहायता से एक घनी झाडी के नीचे आग जला कर सम्राट के लिए पानी उबालने की जुगत में लग गया. गर्मी तेज थी, उसपर से आग की आंच और धुएं की मार से रसोइये की आँखों में पानी भर आया और वह देख नहीं पाया कि झाडी से कुछ सूखी हुई पत्तियां हवा के झोंके से टूट कर उबलने के लिए आंच पर रखे पानी में गिर गयीं थीं. उन पत्तियों के साथ ही पानी उबल गया और पानी का रंग हल्का भूरा सा हो गया. सम्राट को तेज प्यास लगी थी और रसोइया गर्मी, धुएं और पसीने से बेहाल था. सो उसने वही उबला हुआ पानी सम्राट के समक्ष पेश कर दिया.
जैसा कि पहले ही बताया गया है सम्राट शेन नौंग एक आम सम्राट नहीं थे, वे दुनिया के पहले जीनियस और आविष्कारक भी थे और सबसे बड़ी बात यह थी कि गर्मी से उनका बुरा हाल हो रहा था. वे उस हलके भूरे से पानी को फ़ेंक भी सकते थे, दुबारा पानी उबलवा सकते थे, रसोइये का गला हलाक कर दे सकते थे ... लेकिन उनहोंने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि उन्हें यह दिव्य अहसास भी था कि वे दुनिया की सूरत और इंसान की तकदीर बदलने वाले हैं. वे उसी भूरे से पानी की चुस्कियां लेने लगे और महान हो गए. यदि सम्राट शेन नौंग के जमाने में शेक्सपीयर पैदा हुए होते तो वे उसी समय लिख देते, Some are born great, some achieve greatness and some have greatness thrust upon them”!
उस भूरे से पानी की चुस्कियों ने सम्राट शेन नौंग के थके हुए शरीर में एक नयी ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार किया. सम्राट की बाछें खिल गयीं और दुनिया को चाय मिल गयी !!! ईसा पूर्व २७३७ के बाद मानव सभ्यता का इतिहास चाय के इतिहास से ओत-प्रोत हो गया और चीन के लोग उसी दिन से अपने सम्राटों को दैवी अवतार मानने लगे !!!
सहस्राब्दियाँ बीत गयीं और सम्राट शेन नौंग का जीनियस और उनकी महानता चाय की पत्तियों की गर्द में दब गयी. उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि ईसा मसीह की मृत्यु के १९०३ वर्ष बाद महान आविष्कारक टॉमस अल्वा एडीसन ने दी और कहा, “Genius is one percent inspiration, ninety-nine percent perspiration” !!!
कोई सच्चा आविष्कारक ही दूसरे आविष्कारक की महानता को पहचान सकता है !!!

दूसरी किश्त जल्दी ही...

Thursday, April 14, 2011

बिहार और विकास


     
बिहार में चल पड़ी है विकास की बयार,
अन्ना को भी हो गया है बिहार से प्यार.
बिहार ने हमेशा दिखाई है एक नयी सोच,
इस विकास में भी है अद्भुत लोच.
पुलिस में सिपाही बनने गर चाहो जाना,
अंग्रेजी और गणित की तैयारी करके आना.
मैट्रिक के सर्टिफिकेट से नहीं चलेगा काम,
लिखित परीक्षा का जुट गया अब नया आयाम.
पर शिक्षक बनना अब भी है आसान,
करना नहीं पड़ेगा परीक्षा में घमासान.
यहाँ सर्टिफिकेट से ही काम चलेगा,
जाली हो तब भी फर्क न पड़ेगा.
अब सुनो इस अद्भुत विकास की धाप,
सिपाही बोलेगा इंग्लिश, मास्टर अंगूठा छाप.
नहीं रखो मन में कोई भ्रान्ति,
यह है विकास की नयी क्रांति.

Saturday, May 22, 2010

हद कर दी आपने - 2

लालूजी को कौन नहीं जानता? जो उन्हें नहीं जानता है उसका जीना व्यर्थ है, वह पागल या दिवालिया है, भारत का नागरिक नहीं है. अरे, लालूजी भारत की शान हैं - उनमें ऐसा हुनर है कि वे रेलवे के घाटे को भी मुनाफे में बदल देते हैं, बिना कुछ किये ही नाम कमा लेते हैं, अनपढ़ होते हुए भी हार्वर्ड में मैनेजमेंट पर भाषण देते हैं, लाठी को तेल पिलाते हैं और महिला आरक्षण के मुद्दे पर कॉन्ग्रेस पार्टी के पसीने छुड़ा देते हैं, केवल चार एम.पी. की पार्टी के नेता हैं पर सपना प्रधान मंत्री बनने का देखते हैं. लबो-लवाब यह कि लालूजी कमाल के नेता हैं. भारतीय राजनीति को उन्होंने एक नया आयाम दिया है. नेता और जोकर के बीच की दूरी को पूरी तरह मिटा दिया है.
लालूजी का व्यक्तित्व कमाल का है, उनकी बातें बेमिसाल हैं. भला ऐसा और कौन नेता है जो कह सके, " जब तक है समोसे में आलू, तबतक रहेगा बिहार में लालू ". चूंकि उन्होंने नेता और जोकर के बीच की दूरी को मिटा दिया है इसलिए लोग उनकी बातों का बुरा नहीं मानते हैं, उन्हें हँसी में उड़ा देते हैं.
लेकिन लालूजी, कभी-कभी आप भी हद ही कर देते हैं. अभी कुछ ही दिनों पहले जब नक्सलाइटों ने आम नागरिकों से भरी बस को दांतेवाडा में उड़ा दिया और अनेकों आम नागरिकों की जान ले ली तो लालूजी ने कहा, " पुलिस को उसके बारे में खबर करोगे तो मारेगा नहीं क्या ?" मतलब यह कि यदि कोई नागरिक किसी अपराधी के बारे में पुलिस को खबर करता है, तो वह अपराधी उसे मार सकता है. वाह लालूजी वाह! कानून की तो आपने धज्जियां उड़ा कर रख दीं. माना कि आप की पार्टी में अपराधियों की कोई कमी नहीं है, शहाबुद्दीन से ले कर पप्पू यादव तक बिहार के सारे बड़े अपराधी आपके चेले हैं, आपने अपहरण को उद्योग के रूप में स्थापित कर दिया था बिहार में, जो जितना बड़ा अपराधी था वह आपके उतना ही करीब था - फिर भी इस बार तो आपने हद ही कर दी. यदि कहीं पुनः आप बिहार के आका बन गए तो बिहार के आम आदमी तो लुट ही जायेंगे.
हे लालूजी, बस एक कृपा कीजिये. बिहार ने तो आपको पंद्रह सालों तक भोगा है - अब एक मौका दूसरों को भी दीजिये. अब बिहार नहीं, पूरे भारत को सताइए.

हद कर दी आपने - 1

लगता है इस साल गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है और इस गर्मी ने आम आदमी के साथ-साथ देश के महान नेताओं को भी बेहाल कर दिया है. आम आदमी तो फिर भी गर्मी को चुपचाप झेल रहा है - उसे तो झेलने की आदत है, वह तो झेलता ही रहता है. लेकिन बेचारे नेताओं की तो हालत ही खराब हो गयी है - उन्हें तो झेलने की आदत है नहीं, वे तो सिर्फ झेलवाना जानते हैं. अब इस बार गर्मी झेलने पड़ रही है, तो उनके दिमागों की बत्ती ही गुल हो गयी है.


अब अपने शशि थरूर जी को ही लीजिये. गर्मी का मौसम अभी अपनी पूरी रंगत पर आया भी नहीं था, लेकिन बेचारे थरूर जी पर गर्मी चढ़ गयी. अब गलती उनकी भी नहीं है - आदत थी न्यू यार्क, लन्दन, पेरिस में रहने की, पर नेतागिरी के जोश ने ला पटका था केरल में. सो गर्मी शुरू होते ही उनके दिमाग की बत्ती फ्यूज़ हो गयी. बक-बक करने की तो उनकी आदत पुरानी है. मनमोहन जी और सोनिया जी तो उनकी बक-बक को भी बड़ी ममता भरी नज़रों से देखते थे.


लेकिन बुरा हो इस गर्मी का - केरल और दिल्ली की गर्मी ने थरूर जी पर अपना ऐसा असर दिखाया कि वे ललित जी से सींग लड़ा बैठे. अब ललित जी भी तो मोदी हैं - ये मोदी बड़े खतरनाक होते हैं. सो, उन्होंने आव देखा ना ताव, थरूर जी की प्रेम कहानी को ही जग-जाहिर कर दिया. सुनंदा जी, पुष्कर तीर्थ की तरह, रातों रात प्रसिद्द हो गयीं. टी.वी. और अखबारों ने थरूर जी की प्रेम कहानी पर कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए. थरूर जी के साथ-साथ सुनंदा जी भी सेलेब्रिटी बन गयीं.


मैंने कहा न कि ये मोदी बड़े खतरनाक होते हैं. उन्होंने तो हद ही कर दी. थरूर जी को वार्म अप होने के पहले टीम से ही गेट-आउट करवा दिया. खुद तो मोदी जी मोनैको में मस्ती करने चल दिए और छोड़ दिया थरूर जी को केरल और दिल्ली की गर्मी झेलने को. उधर वे मोनैको में मजे लूट रहे हैं और इधर थरूर जी साउथ ब्लॉक को देख कर दुखी मन से गुनगुना रहे हैं "हाय, हाय ये मजबूरी; ये मौसम और ये दूरी ...".


मोदी जी, हद कर दी आपने; कुछ तो ख्याल किया होता.

Tuesday, May 4, 2010

चूहानामा

बिहार के मुख्य मंत्री को चूहे ने काटा!
  
शायद आपने यह समाचार टी.वी. पर सुना होगा अथवा समाचार पत्रों में पढ़ा होगा और संभवतः भूल भी गए होंगे; या शायद नहीं भी. किन्तु यह समाचार है गंभीर! आखिर ऐसा अक्सर तो नहीं होता न कि किसी राज्य के माननीय मुख्य मंत्रीजी को रात में सोते समय कोई चूहा काट खाए. अस्तु, जब ऐसा हुआ है तो यह मसला गंभीर है, चिंतनीय है. यह मामला ऐसा कदापि नहीं है कि इसे भुला दिया जाए, या हँसी में उड़ा दिया जाए. मैंने तो इसे पूरी गंभीरता से लिया है और तीन दिनों तक इस विषय पर गहन चिंतन किया है; इसका मंथन किया है.


बिहार विकास के पथ पर अग्रसर है, प्रदेश में चंहु ओर विकास की शीतल बयार बह रही है, बिहार अब किसी के रोके रुकनेवाला नहीं है. योजना आयोग के अनुसार पिछले वर्ष बिहार के विकास की रफ़्तार गुजरात के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों से बेहतर थी. एन.डी.टी.वी. ने माननीय मुख्य मंत्री, बिहार को "वर्ष के सर्वश्रेष्ठ उद्द्यमी" (Entrepreneur of the Year) की उपाधि से नवाज़ा है. न्यू यार्क टाईम्स तथा न्यूज़वीक में बिहार और उसके मुख्य मंत्री की प्रशंसा में कसीदे पढ़े जा रहे हैं. अरे, जब विदेशी पात्र-पत्रिकाएं तक बिहार की तारीफ़ कर रही हैं, तब बिहार के विकास पर शक कैसा? जब गोरी चमड़ी वालों ने ही स्वीकार कर लिया कि बिहार में विकास की अनवरत धार बह रही है तब कोई शुबहा, कोई संदेह, सर्वथा बेमानी है. कुछ लोग तो मिज़ाज से ही शक्की होते हैं. हर चीज़ को शक की नज़र से देखते हैं. पत्नी पर शक, बच्चों पर शक, पड़ोसियों पर शक, दूधवाले पर शक - गोया शक ही उनकी ज़िंदगी हो! मैं वैसा नहीं हूँ. गोरी चमड़ी वालों की कही हर बात को मैं ब्रह्मवाक्य मानता हूँ. ठोस भारतीय हूँ - स्वतंत्रता के बाद भी गुलाम हूँ, विदेश जाने को मरता हूँ, हर विदेशी चीज़ और हर विदेशी महिला की ओर हसरतभरी नज़रों से देखता हूँ; खांटी देशभक्त भारतीय हूँ!! अतः मैं मानता हूँ कि बिहार में अविरल  विकास हो रहा है. ऐसे में माननीय मुख्य मंत्रीजी के चूहे द्वारा काट खाए जाने की घटना, मुझे तो किसी सोची समझी साज़िश का परिणाम प्रतीत होती है.


दुर्भाग्यवश, मैं सांसद या विधायक नहीं हूँ, वर्ना मैं तो तत्काल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के गठन की मांग करता; शून्य काल में इस मामले को चीख चीख कर उठाता; सदन का बहिष्कार करता; यहाँ तक कि सदन की कार्यवाही भी भंग करवाने में नहीं हिचकता. अरे, जब मुद्रास्फीति (inflation), महिला आरक्षण, पेट्रोल-डीज़ल की मूल्य वृद्धि आदि टुच्ची चीज़ों पर संसद ठप्प हो सकता है, तो फिर यह तो बिहार जैसे द्रुत-प्रगतिशील राज्य के मुख्य मंत्री के विरुद्ध हो रही साज़िश से संबंधित गहन एवं गंभीर मसला है.


आप खुद सोचिये, क्या यह मामला रफा-दफा किये जाने लायक है? अरे, यह तो हमारे माननीय मुख्य मंत्रीजी की महानता है कि उन्होंने इस मामले तो तूल नहीं दिया. टी.वी. वाले तो पीछे पड़े ही हुए थे - "सर, प्लीज़ सर, एक बाईट दे दीजिये सर. आप सो रहे थे या जगे हुए थे जब यह घटना हुई? यदि आप सो रहे थे तो आपने कैसे देखा कि वह चूहा ही था, छूछून्दर नहीं? जब चूहे या छूछून्दर ने आपको काटा तो आप कैसा महसूस कर रहे थे? क्या बहुत दर्द हो रहा था आपको?" सवालों की तो झड़ी ही लगा दी थी टी.वी. वालों ने. पर माननीय मुख्य मंत्रीजी ने कुछ भी बोलने से साफ़ इन्कार कर दिया. यदि उनकी जगह लालूजी होते तो इस घटना को जाति की राजनीति से जोड़ देते. वे तो ऐसी ऐसी बातें बोलते कि बिहार अबतक जल उठा होता. वह तो भला हो कि नीतीशजी थे; चुप रहकर उन्होंने बिहार को जलने से बचा लिया. वर्ना बिहार के खस्ताहाल अग्नि-शमन दस्तों (fire brigade) के बूते के बाहर हो जाता! वे बेचारे तो खेत-खलिहान में लगी आग तक नहीं बुझा पाते हैं, आग लगने पर पानी ढूंढते हैं और पानी नहीं मिलने पर बगैर पानी के ही आग पर काबू पाने के लिए तरह - तरह के पैंतरे बदलते हैं!!


बहरहाल, बात यह है कि बिहार तरक्की कर रहा है, और ऐसे विकासशील राज्य के मुख्य मंत्री को जिला मुख्यालय के परिसदन (circuit house) के सर्वोत्तम कक्ष में चूहे ने काट लिया, उनकी नींद ख़राब कर दी, सिविल सर्जन को आधी रात को दौड़ाया और सारे सरकारी महकमे में खलबल मचा दी! जो चूहा इतनी बड़ी कारस्तानी कर सकता है वह कोई सामान्य चूहा तो हो ही नहीं सकता! वह कोई बेवक़ूफ़ चूहा नहीं था, यह तो उसने पूर्णतया सिद्ध कर ही दिया - बेवक़ूफ़ चूहा होता तो किसी कारिंदे को काटता. उसने राजा को काटा - सामान्य चूहा नहीं था वह. आम चूहा आम आदमी को काटता; वह ख़ास चूहा था, उसने ख़ास को काटा.


ठीक है बाबा! वह ख़ास चूहा था! अब प्रश्न यह उठता है कि उसने मुख्य मंत्रीजी को काटने में सफलता पाई कैसे? क्या वह बाहर से कमरे के अन्दर आया? अगर ऐसा हुआ है तब तो यह मामला और भी गंभीर हो जाता है. यह तो माननीय मुख्य मंत्रीजी की सुरक्षा में सेंध लगाने जैसी बात हो गयी. अरे, जब चूहा सभी सुरक्षाकर्मियों को धत्ता बता कर घुस ही गया, और न केवल घुस गया बल्कि माननीय को काट भी लिया; तो फिर क्या सुरक्षा, कैसी सुरक्षा? पर काफी मंथन करने के बाद, मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि चूहा बाहर से कमरे में नहीं आया होगा. ऐसा हुआ होता तो कई शीर्षस्थ पुलिस पदाधिकारियों के तबादले का फरमान कबका निकल चुका होता. अभी पिछले वर्ष की ही तो बात है, नीतीशजी ने पटना के आई.जी, डी.आई.जी,सीनियर एस.पी. सभी की एकमुश्त छुट्टी कर दी थी. मामला एक महिला को पुलिस गश्ती दल की उपस्थिति में सरेआम पीटे जाने का था. यह बात और है कि उस महिला का चरित्र संदेहास्पद था और जो व्यक्ति उसे खुली सड़क पर पीट रहा था वह उसका दलाल था. फिर भी मामला सनसनीखेज तो था ही और उस पूरे वाकिये में लापरवाही उस गश्ती दल के छोटे दारोगा और सिपाहियों की थी. पर नीतीशजी ने, बिना किसी जांच के, असरानी कि तरह, रातों रात पूरे घर के ही बदल डाले थे! इस चूहा प्रकरण में ऐसा कुछ भी नहीं किया है उन्होंने - स्पष्टतः सुरक्षा की भूमिका संदिग्ध नहीं थी. नहीं तो नीतीशजी तो डी.जी.पी.तक को भी अब तक चलता कर चुके होते! वे निर्णय चुटकियों में लेते हैं और पलक झपकते कार्यान्वित भी कर देते हैं. यही तो है बिहार की तरक्की का राज़! सो, इतना तो तय ही है कि चूहा बाहर से कमरे के अन्दर नहीं आया था. 


इसका मतलब हुआ कि वह ख़ास चूहा, किसी ख़ास मकसद से, पहले से ही घात लगा कर कमरे में छुपा रहा होगा और नीतीशजी के नींद में गाफिल होते ही उनपर आक्रमण कर बैठा होगा. बाप रे बाप; चूहा था या नक्सलाईट? नक्सलाईट भी तो ऐसे ही घात लगा कर, गाफिल देखकर अचानक हमला कर बैठते हैं. तो क्या नक्सलाइटों ने चूहों को भी प्रशिक्षित कर दिया है? पर नीतीशजी तो नक्सलाइटों के प्रति नरम रुख रखते हैं. गरम दल में तो चिदंबरम, बुद्धाबाबू और रमण सिंहजी हैं. नीतीशजी और शिबुजी तो नरम दल के हैं. फिर नक्सलाईट नीतीशजी पर हमला भला क्यों करेंगे या करवाएंगे? अतः यह भी पक्का है कि इस मूषक आक्रमण में नक्सलाइटों का हाथ नहीं था. 


पर यह मूषक था बड़ा दूरदर्शी! और हो भी क्यों नहीं - आखिर गणेशजी की सवारी जो ठहरा. गणेशजी को लड्डू बहुत पसंद हैं, यह तो सभी जानते हैं. फिर कहीं ऐसा तो नहीं, कि नीतीशजी आजकल लड्डू बहुत खा रहें हों और लड्डू की खुशबू गणेशजी की सवारी को वहां तक खींच लाई हो? नीतीशजी, लड्डू कुछ कम खाया करिए - चुनाव का ज़माना है, इस बार तो चूहे ने ऊंगली ही काटी है कहीं अँधेरे में इधर उधर दांत गड़ा दिया तो लेनी की देनी हो जायेगी चुनावों में!!


यह भी तो हो सकता है कि बिहार की तरक्की से भिन्नाये हुए नीतीशजी के विरोधियों ने चूहे के रास्ते तरक्की में सेंध मारने की कोशिश की हो? क्या वे यह बताना चाहते हैं कि जिस राज्य में उसका मुख्य मंत्री तक चूहे से महफूज़ नहीं है, उस राज्य में तरक्की की बात बेमानी है? लानत है ऐसे विरोधियों पर, जो विदेशियों और ख़ास कर गोरी चमड़ी वालों की बात भी मानने को तैयार नहीं हैं. ऐसे लोग सच्चे भारतीय नहीं हैं. अरे, सच्चा भारतीय तो वह है जो गोरी चमड़ी वालों को आज भी अपना मालिक मानता है. जो यह जानता है कि जब गोरी चमड़ी वालों ने कह दिया तो कह दिया. अपने कांग्रेसियों को ही देख लीजिये, अंग्रेजों के समय से ही पूरे देशभक्त हैं. आज भी आँख मूँद कर गोरी चमड़ी वालों की हर बात शिरोधार्य करते हैं. वे क्या बेवक़ूफ़ हैं? गोरी चमड़ी की बदौलत देश की गद्दी पर बैठे हैं! तो फिर हम और आप किस खेत की मूली हैं कि गोरी चमड़ी वालों की कही हुई बात को शक की नज़र से देखें?


लेकिन चूहा नीतीशजी तक आखिर पहुंचा कैसे? क्या नीतीशजी बगैर मच्छरदानी के सो रहे थे? संभवतः ऐसा ही रहा होगा, नहीं तो खबर यह आती कि चूहे ने पहले मच्छरदानी को काटा और तब माननीय मुख्य मंत्रीजी को. ये पत्रकार भी बड़े अजीब होते हैं - मच्छरदानी और मुख्य मंत्री बराबर हैं क्या? इनकी तो बात ही छोड़िये. बात तो हम नीतीशजी की कर रहे थे. नीतीशजी सचमुच एक महान और पराक्रमी व्यक्ति हैं! मैं तो कायल हो गया हूँ उनके पराक्रम का. धन्य है बिहार जिसे इतना प्रतापी और पराक्रमी मुख्य मंत्री नसीब हुआ! कोई महान प्रतापी और पराक्रमी ही इस विकसित बिहार में बगैर मच्छरदानी के सोने की हिम्मत दिखा सकता है. अरे, यहाँ तो इतने मच्छर हैं कि वे सोते हुए व्यक्ति को उठा कर ले जाएँ! पर धन्य हैं हमारे मुख्य मंत्रीजी - वे मच्छरों से तनिक भी नहीं घबराते! आम आदमी से कितना प्यार है उन्हें - बिहार के गरीबों की तरह वे भी रात भर मच्छरों से खुद को कटवाते हैं!! यह बात दूसरी है कि इस विकसित बिहार के गरीबों के लिए एक अदद मच्छरदानी खरीदना भी भारी है. मगर वाह रे नीतीशजी, वे स्वेच्छा से ऐसा करते हैं!!! पूर्णतया सोशलिस्ट हैं, इंसान तो क्या मच्छरों के विकास की भी चिंता करते हैं और निर्विकार भाव से उनके लिए प्रतिदिन रक्तदान करते हैं! बिल्कुल जनता की तरह जीते हैं, इसीलिये खूब जनता दरबार करते हैं.  तथा मच्छरों और चूहों से खुद को कटवा-कटवा कर भी बिहार की खुशहाली का ढिंढोरा दिल्ली तो क्या न्यू यार्क तक में पिटवाते हैं!!!! 


धन्य है यह विकसित बिहार और धन्य हैं यहाँ के विकासशील मुख्य मंत्रीजी! वे चूहे से अपनी ऊंगली कटवा लेंगे पर किसी को बिहार के विकास पर ऊंगली नहीं उठाने देंगे!! अरे, विकास हो तो ऐसा हो, इंसानों के साथ साथ चूहों और मच्छरों का भी समेकित विकास!!!


समवेत स्वर से बोलिए - विकास पुरुष की जय!
ऐसे विकसित बिहार की जय!!