Tuesday, May 4, 2010

चूहानामा

बिहार के मुख्य मंत्री को चूहे ने काटा!
  
शायद आपने यह समाचार टी.वी. पर सुना होगा अथवा समाचार पत्रों में पढ़ा होगा और संभवतः भूल भी गए होंगे; या शायद नहीं भी. किन्तु यह समाचार है गंभीर! आखिर ऐसा अक्सर तो नहीं होता न कि किसी राज्य के माननीय मुख्य मंत्रीजी को रात में सोते समय कोई चूहा काट खाए. अस्तु, जब ऐसा हुआ है तो यह मसला गंभीर है, चिंतनीय है. यह मामला ऐसा कदापि नहीं है कि इसे भुला दिया जाए, या हँसी में उड़ा दिया जाए. मैंने तो इसे पूरी गंभीरता से लिया है और तीन दिनों तक इस विषय पर गहन चिंतन किया है; इसका मंथन किया है.


बिहार विकास के पथ पर अग्रसर है, प्रदेश में चंहु ओर विकास की शीतल बयार बह रही है, बिहार अब किसी के रोके रुकनेवाला नहीं है. योजना आयोग के अनुसार पिछले वर्ष बिहार के विकास की रफ़्तार गुजरात के अतिरिक्त अन्य सभी राज्यों से बेहतर थी. एन.डी.टी.वी. ने माननीय मुख्य मंत्री, बिहार को "वर्ष के सर्वश्रेष्ठ उद्द्यमी" (Entrepreneur of the Year) की उपाधि से नवाज़ा है. न्यू यार्क टाईम्स तथा न्यूज़वीक में बिहार और उसके मुख्य मंत्री की प्रशंसा में कसीदे पढ़े जा रहे हैं. अरे, जब विदेशी पात्र-पत्रिकाएं तक बिहार की तारीफ़ कर रही हैं, तब बिहार के विकास पर शक कैसा? जब गोरी चमड़ी वालों ने ही स्वीकार कर लिया कि बिहार में विकास की अनवरत धार बह रही है तब कोई शुबहा, कोई संदेह, सर्वथा बेमानी है. कुछ लोग तो मिज़ाज से ही शक्की होते हैं. हर चीज़ को शक की नज़र से देखते हैं. पत्नी पर शक, बच्चों पर शक, पड़ोसियों पर शक, दूधवाले पर शक - गोया शक ही उनकी ज़िंदगी हो! मैं वैसा नहीं हूँ. गोरी चमड़ी वालों की कही हर बात को मैं ब्रह्मवाक्य मानता हूँ. ठोस भारतीय हूँ - स्वतंत्रता के बाद भी गुलाम हूँ, विदेश जाने को मरता हूँ, हर विदेशी चीज़ और हर विदेशी महिला की ओर हसरतभरी नज़रों से देखता हूँ; खांटी देशभक्त भारतीय हूँ!! अतः मैं मानता हूँ कि बिहार में अविरल  विकास हो रहा है. ऐसे में माननीय मुख्य मंत्रीजी के चूहे द्वारा काट खाए जाने की घटना, मुझे तो किसी सोची समझी साज़िश का परिणाम प्रतीत होती है.


दुर्भाग्यवश, मैं सांसद या विधायक नहीं हूँ, वर्ना मैं तो तत्काल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के गठन की मांग करता; शून्य काल में इस मामले को चीख चीख कर उठाता; सदन का बहिष्कार करता; यहाँ तक कि सदन की कार्यवाही भी भंग करवाने में नहीं हिचकता. अरे, जब मुद्रास्फीति (inflation), महिला आरक्षण, पेट्रोल-डीज़ल की मूल्य वृद्धि आदि टुच्ची चीज़ों पर संसद ठप्प हो सकता है, तो फिर यह तो बिहार जैसे द्रुत-प्रगतिशील राज्य के मुख्य मंत्री के विरुद्ध हो रही साज़िश से संबंधित गहन एवं गंभीर मसला है.


आप खुद सोचिये, क्या यह मामला रफा-दफा किये जाने लायक है? अरे, यह तो हमारे माननीय मुख्य मंत्रीजी की महानता है कि उन्होंने इस मामले तो तूल नहीं दिया. टी.वी. वाले तो पीछे पड़े ही हुए थे - "सर, प्लीज़ सर, एक बाईट दे दीजिये सर. आप सो रहे थे या जगे हुए थे जब यह घटना हुई? यदि आप सो रहे थे तो आपने कैसे देखा कि वह चूहा ही था, छूछून्दर नहीं? जब चूहे या छूछून्दर ने आपको काटा तो आप कैसा महसूस कर रहे थे? क्या बहुत दर्द हो रहा था आपको?" सवालों की तो झड़ी ही लगा दी थी टी.वी. वालों ने. पर माननीय मुख्य मंत्रीजी ने कुछ भी बोलने से साफ़ इन्कार कर दिया. यदि उनकी जगह लालूजी होते तो इस घटना को जाति की राजनीति से जोड़ देते. वे तो ऐसी ऐसी बातें बोलते कि बिहार अबतक जल उठा होता. वह तो भला हो कि नीतीशजी थे; चुप रहकर उन्होंने बिहार को जलने से बचा लिया. वर्ना बिहार के खस्ताहाल अग्नि-शमन दस्तों (fire brigade) के बूते के बाहर हो जाता! वे बेचारे तो खेत-खलिहान में लगी आग तक नहीं बुझा पाते हैं, आग लगने पर पानी ढूंढते हैं और पानी नहीं मिलने पर बगैर पानी के ही आग पर काबू पाने के लिए तरह - तरह के पैंतरे बदलते हैं!!


बहरहाल, बात यह है कि बिहार तरक्की कर रहा है, और ऐसे विकासशील राज्य के मुख्य मंत्री को जिला मुख्यालय के परिसदन (circuit house) के सर्वोत्तम कक्ष में चूहे ने काट लिया, उनकी नींद ख़राब कर दी, सिविल सर्जन को आधी रात को दौड़ाया और सारे सरकारी महकमे में खलबल मचा दी! जो चूहा इतनी बड़ी कारस्तानी कर सकता है वह कोई सामान्य चूहा तो हो ही नहीं सकता! वह कोई बेवक़ूफ़ चूहा नहीं था, यह तो उसने पूर्णतया सिद्ध कर ही दिया - बेवक़ूफ़ चूहा होता तो किसी कारिंदे को काटता. उसने राजा को काटा - सामान्य चूहा नहीं था वह. आम चूहा आम आदमी को काटता; वह ख़ास चूहा था, उसने ख़ास को काटा.


ठीक है बाबा! वह ख़ास चूहा था! अब प्रश्न यह उठता है कि उसने मुख्य मंत्रीजी को काटने में सफलता पाई कैसे? क्या वह बाहर से कमरे के अन्दर आया? अगर ऐसा हुआ है तब तो यह मामला और भी गंभीर हो जाता है. यह तो माननीय मुख्य मंत्रीजी की सुरक्षा में सेंध लगाने जैसी बात हो गयी. अरे, जब चूहा सभी सुरक्षाकर्मियों को धत्ता बता कर घुस ही गया, और न केवल घुस गया बल्कि माननीय को काट भी लिया; तो फिर क्या सुरक्षा, कैसी सुरक्षा? पर काफी मंथन करने के बाद, मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि चूहा बाहर से कमरे में नहीं आया होगा. ऐसा हुआ होता तो कई शीर्षस्थ पुलिस पदाधिकारियों के तबादले का फरमान कबका निकल चुका होता. अभी पिछले वर्ष की ही तो बात है, नीतीशजी ने पटना के आई.जी, डी.आई.जी,सीनियर एस.पी. सभी की एकमुश्त छुट्टी कर दी थी. मामला एक महिला को पुलिस गश्ती दल की उपस्थिति में सरेआम पीटे जाने का था. यह बात और है कि उस महिला का चरित्र संदेहास्पद था और जो व्यक्ति उसे खुली सड़क पर पीट रहा था वह उसका दलाल था. फिर भी मामला सनसनीखेज तो था ही और उस पूरे वाकिये में लापरवाही उस गश्ती दल के छोटे दारोगा और सिपाहियों की थी. पर नीतीशजी ने, बिना किसी जांच के, असरानी कि तरह, रातों रात पूरे घर के ही बदल डाले थे! इस चूहा प्रकरण में ऐसा कुछ भी नहीं किया है उन्होंने - स्पष्टतः सुरक्षा की भूमिका संदिग्ध नहीं थी. नहीं तो नीतीशजी तो डी.जी.पी.तक को भी अब तक चलता कर चुके होते! वे निर्णय चुटकियों में लेते हैं और पलक झपकते कार्यान्वित भी कर देते हैं. यही तो है बिहार की तरक्की का राज़! सो, इतना तो तय ही है कि चूहा बाहर से कमरे के अन्दर नहीं आया था. 


इसका मतलब हुआ कि वह ख़ास चूहा, किसी ख़ास मकसद से, पहले से ही घात लगा कर कमरे में छुपा रहा होगा और नीतीशजी के नींद में गाफिल होते ही उनपर आक्रमण कर बैठा होगा. बाप रे बाप; चूहा था या नक्सलाईट? नक्सलाईट भी तो ऐसे ही घात लगा कर, गाफिल देखकर अचानक हमला कर बैठते हैं. तो क्या नक्सलाइटों ने चूहों को भी प्रशिक्षित कर दिया है? पर नीतीशजी तो नक्सलाइटों के प्रति नरम रुख रखते हैं. गरम दल में तो चिदंबरम, बुद्धाबाबू और रमण सिंहजी हैं. नीतीशजी और शिबुजी तो नरम दल के हैं. फिर नक्सलाईट नीतीशजी पर हमला भला क्यों करेंगे या करवाएंगे? अतः यह भी पक्का है कि इस मूषक आक्रमण में नक्सलाइटों का हाथ नहीं था. 


पर यह मूषक था बड़ा दूरदर्शी! और हो भी क्यों नहीं - आखिर गणेशजी की सवारी जो ठहरा. गणेशजी को लड्डू बहुत पसंद हैं, यह तो सभी जानते हैं. फिर कहीं ऐसा तो नहीं, कि नीतीशजी आजकल लड्डू बहुत खा रहें हों और लड्डू की खुशबू गणेशजी की सवारी को वहां तक खींच लाई हो? नीतीशजी, लड्डू कुछ कम खाया करिए - चुनाव का ज़माना है, इस बार तो चूहे ने ऊंगली ही काटी है कहीं अँधेरे में इधर उधर दांत गड़ा दिया तो लेनी की देनी हो जायेगी चुनावों में!!


यह भी तो हो सकता है कि बिहार की तरक्की से भिन्नाये हुए नीतीशजी के विरोधियों ने चूहे के रास्ते तरक्की में सेंध मारने की कोशिश की हो? क्या वे यह बताना चाहते हैं कि जिस राज्य में उसका मुख्य मंत्री तक चूहे से महफूज़ नहीं है, उस राज्य में तरक्की की बात बेमानी है? लानत है ऐसे विरोधियों पर, जो विदेशियों और ख़ास कर गोरी चमड़ी वालों की बात भी मानने को तैयार नहीं हैं. ऐसे लोग सच्चे भारतीय नहीं हैं. अरे, सच्चा भारतीय तो वह है जो गोरी चमड़ी वालों को आज भी अपना मालिक मानता है. जो यह जानता है कि जब गोरी चमड़ी वालों ने कह दिया तो कह दिया. अपने कांग्रेसियों को ही देख लीजिये, अंग्रेजों के समय से ही पूरे देशभक्त हैं. आज भी आँख मूँद कर गोरी चमड़ी वालों की हर बात शिरोधार्य करते हैं. वे क्या बेवक़ूफ़ हैं? गोरी चमड़ी की बदौलत देश की गद्दी पर बैठे हैं! तो फिर हम और आप किस खेत की मूली हैं कि गोरी चमड़ी वालों की कही हुई बात को शक की नज़र से देखें?


लेकिन चूहा नीतीशजी तक आखिर पहुंचा कैसे? क्या नीतीशजी बगैर मच्छरदानी के सो रहे थे? संभवतः ऐसा ही रहा होगा, नहीं तो खबर यह आती कि चूहे ने पहले मच्छरदानी को काटा और तब माननीय मुख्य मंत्रीजी को. ये पत्रकार भी बड़े अजीब होते हैं - मच्छरदानी और मुख्य मंत्री बराबर हैं क्या? इनकी तो बात ही छोड़िये. बात तो हम नीतीशजी की कर रहे थे. नीतीशजी सचमुच एक महान और पराक्रमी व्यक्ति हैं! मैं तो कायल हो गया हूँ उनके पराक्रम का. धन्य है बिहार जिसे इतना प्रतापी और पराक्रमी मुख्य मंत्री नसीब हुआ! कोई महान प्रतापी और पराक्रमी ही इस विकसित बिहार में बगैर मच्छरदानी के सोने की हिम्मत दिखा सकता है. अरे, यहाँ तो इतने मच्छर हैं कि वे सोते हुए व्यक्ति को उठा कर ले जाएँ! पर धन्य हैं हमारे मुख्य मंत्रीजी - वे मच्छरों से तनिक भी नहीं घबराते! आम आदमी से कितना प्यार है उन्हें - बिहार के गरीबों की तरह वे भी रात भर मच्छरों से खुद को कटवाते हैं!! यह बात दूसरी है कि इस विकसित बिहार के गरीबों के लिए एक अदद मच्छरदानी खरीदना भी भारी है. मगर वाह रे नीतीशजी, वे स्वेच्छा से ऐसा करते हैं!!! पूर्णतया सोशलिस्ट हैं, इंसान तो क्या मच्छरों के विकास की भी चिंता करते हैं और निर्विकार भाव से उनके लिए प्रतिदिन रक्तदान करते हैं! बिल्कुल जनता की तरह जीते हैं, इसीलिये खूब जनता दरबार करते हैं.  तथा मच्छरों और चूहों से खुद को कटवा-कटवा कर भी बिहार की खुशहाली का ढिंढोरा दिल्ली तो क्या न्यू यार्क तक में पिटवाते हैं!!!! 


धन्य है यह विकसित बिहार और धन्य हैं यहाँ के विकासशील मुख्य मंत्रीजी! वे चूहे से अपनी ऊंगली कटवा लेंगे पर किसी को बिहार के विकास पर ऊंगली नहीं उठाने देंगे!! अरे, विकास हो तो ऐसा हो, इंसानों के साथ साथ चूहों और मच्छरों का भी समेकित विकास!!!


समवेत स्वर से बोलिए - विकास पुरुष की जय!
ऐसे विकसित बिहार की जय!!

2 comments:

  1. That was good. Not only did you transport me to the Bihari wonderland of progress but have given me a great way to do some reading in Hindi which i seldom do these days. With such focus in your thinking process ,clarity in its delivery and wit sprinkled all over, am looking forward to partake in many more delicious feasts from your table.

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  2. Sorry Mani for the late reply. We are at Mumbai; house hunting for Ketaki. Therefore did not see your comment earlier. Did not know you would be a lover of Hindi though. Good to know that and hopefully you would get to read more of my thoughts here. Thanks for the encouraging comments.

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