लगता है इस साल गर्मी कुछ ज्यादा ही पड़ रही है और इस गर्मी ने आम आदमी के साथ-साथ देश के महान नेताओं को भी बेहाल कर दिया है. आम आदमी तो फिर भी गर्मी को चुपचाप झेल रहा है - उसे तो झेलने की आदत है, वह तो झेलता ही रहता है. लेकिन बेचारे नेताओं की तो हालत ही खराब हो गयी है - उन्हें तो झेलने की आदत है नहीं, वे तो सिर्फ झेलवाना जानते हैं. अब इस बार गर्मी झेलने पड़ रही है, तो उनके दिमागों की बत्ती ही गुल हो गयी है.
अब अपने शशि थरूर जी को ही लीजिये. गर्मी का मौसम अभी अपनी पूरी रंगत पर आया भी नहीं था, लेकिन बेचारे थरूर जी पर गर्मी चढ़ गयी. अब गलती उनकी भी नहीं है - आदत थी न्यू यार्क, लन्दन, पेरिस में रहने की, पर नेतागिरी के जोश ने ला पटका था केरल में. सो गर्मी शुरू होते ही उनके दिमाग की बत्ती फ्यूज़ हो गयी. बक-बक करने की तो उनकी आदत पुरानी है. मनमोहन जी और सोनिया जी तो उनकी बक-बक को भी बड़ी ममता भरी नज़रों से देखते थे.
लेकिन बुरा हो इस गर्मी का - केरल और दिल्ली की गर्मी ने थरूर जी पर अपना ऐसा असर दिखाया कि वे ललित जी से सींग लड़ा बैठे. अब ललित जी भी तो मोदी हैं - ये मोदी बड़े खतरनाक होते हैं. सो, उन्होंने आव देखा ना ताव, थरूर जी की प्रेम कहानी को ही जग-जाहिर कर दिया. सुनंदा जी, पुष्कर तीर्थ की तरह, रातों रात प्रसिद्द हो गयीं. टी.वी. और अखबारों ने थरूर जी की प्रेम कहानी पर कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए. थरूर जी के साथ-साथ सुनंदा जी भी सेलेब्रिटी बन गयीं.
मैंने कहा न कि ये मोदी बड़े खतरनाक होते हैं. उन्होंने तो हद ही कर दी. थरूर जी को वार्म अप होने के पहले टीम से ही गेट-आउट करवा दिया. खुद तो मोदी जी मोनैको में मस्ती करने चल दिए और छोड़ दिया थरूर जी को केरल और दिल्ली की गर्मी झेलने को. उधर वे मोनैको में मजे लूट रहे हैं और इधर थरूर जी साउथ ब्लॉक को देख कर दुखी मन से गुनगुना रहे हैं "हाय, हाय ये मजबूरी; ये मौसम और ये दूरी ...".
मोदी जी, हद कर दी आपने; कुछ तो ख्याल किया होता.
Saturday, May 22, 2010
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